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एक दिन की बात है रितेश को स्कूल के लिए देरी हो रही थी। वह घास नहीं ला सका, और स्कूल चला गया। जब स्कूल से आया तो खरगोश अपने घर में नहीं था। रितेश ने खूब ढूंढा परंतु कहीं नहीं मिला। सब लोगों से पूछा मगर खरगोश कहीं भी नहीं मिला।

"गुड़-गुड़ दी एनेक्सी दी वेध्याना दी मूंग दी दाल ऑफ़ दी पाकिस्तान एंड हिंदुस्तान ऑफ़ दी दुर्र फिट्टे मुंह......!"

यह किसी ऐसे फ़ेबल जैसी कहानी है जो हिंदी कहानी के इतिहास में हमेशा बनी रहेगी. इसे पढ़ते हुए आधुनिक-सभ्यता के उन पूर्व दार्शनिकों का कथन याद आता है : 'एवरीवन इज़ डिसीविंग दि अदर एंड एवरीवन इज़ डिसीव्ड बाय दि अदर.

उत्तरा नाम के एक गाँव में कुसलनाथ नाम का एक पुजारी अपनी पत्नी और छह बेटों के साथ रहता था। वह धनी-मानी व्यक्ति था लेकिन कुछ दुर्भाग्य के कारण उसे पैसों की समस्या होने लगीं। स्थिति इतनी खराब थी कि पुजारी को जीवन यापन के लिए अतिरिक्त काम करने पड़े। वह जंगल से बांस की लकड़ी इकट्ठा करता था। एक दिन उसने जंगल की आग में फंसे एक छोटे से नाग को देखा। जैसे ही उसने नाग को बचाया, उसने उसे काटने की कोशिश की। इसके बाद पुजारी रोने लगा। नाग ने महसूस किया कि पुजारी सिर्फ उसकी मदद कर रहा था और उसे काटना गलत था। उसने अपने परिवार की भलाई के लिए पुजारी को दो रत्न भेंट किए। पुजारी ने फिर उसी स्थान पर नाग के सम्मान में एक छोटा मंदिर बनवाया।

एक बार की बात है, एक बाघ पिंजरे में कैद हो गया। उसने खुद को बहार करने की कोशिश की लेकिन हर बार नाकाम रहा। उसने देखा कि एक ब्राह्मण रास्ता पार कर रहा है। बाघ ने ब्राह्मण से उसकी मदद करने के लिए कहा लेकिन आदमी ने बाघ के खा जाने के डर से मदद करने से मना कर दिया। बाघ मदद के लिए बहुत रोया और उसे न खाने का वादा किया। अंत में, ब्राह्मण ने उसे पिंजरे से मुक्त करने का फैसला किया।

उनकी पूरी योजना जानने के लिए हमारा पॉडकास्ट सुनें check here

Impression: Courtesy Amazon This is a considered-provoking novel penned by Kamleshwar, a renowned Indian author. Originally revealed in Hindi, the novel delves into your sophisticated fabric of India’s social and political landscape in the course of the tumultuous period of partition in 1947. Kamleshwar weaves a narrative that explores the impression of partition about the life of everyday people as well as deep-rooted scars it left on the country’s collective psyche.

'मौत के कुंए' में रैप करने वाला वो भारतीय जिसने रैप की दुनिया के बड़े खिलाड़ियों को छोड़ा पीछे

कालिया ने अपने दोस्तों को भी परेशान किया हुआ था।

उन हिरणियों के पैरों से विशाल को चोट लगी, वह रोने लगा।

हरियाणा विधानसभा चुनाव: क्या गुटबाज़ी से निकलकर बीजेपी को चुनौती दे पाएगी कांग्रेस? - द लेंस

यह कवच विशाल को कुछ दिनों में भारी लगने लगा। उसने सोचा इस कवच से बाहर निकल कर जिंदगी को जीना चाहिए। अब मैं बलवान हो गया हूं , मुझे कवच की जरूरत नहीं है।

"यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती नहीं, पर मीठी छुरी की तरह महीन मार करती हुई. यदि कोई बुढ़िया बार-बार चितौनी देने पर भी लीक से नहीं हटती, तो उनकी बचनावली के ये नमूने हैं हट जा – जीणे जोगिए; हट जा करमाँवालिए; हट जा पुत्ताँ प्यारिए; बच जा लंबीवालिए.

वह इस समय दूसरे कमरे में बेहोश पड़ा है। आज मैंने उसकी शराब में कोई चीज़ मिला दी थी कि ख़ाली शराब वह शरबत की तरह गट-गट पी जाता है और उस पर कोई ख़ास असर नहीं होता। आँखों में लाल ढोरे-से झूलने लगते हैं, माथे की शिकनें पसीने में भीगकर दमक उठती हैं, होंठों कृष्ण बलदेव वैद

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